आज, कल और परसों अर्थात अगले तीन दिन, कोरोना के तीसरे चरण यानि "कम्यूनिटी ट्रांसमिशन स्टेज" में पहुंचने की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
भाइयो समझने की कोशिश कीजिए कि अगर एक बार यह महामारी तीसरे चरण में पहुंच गयी तो भारत में यह विध्वंसक होगा।
क्या आप समझ पा रहे हैं कि सरकार कोरोना टेस्ट करवाने की रफ्तार सीमित क्यों रखे हुए है ?

जितने समय में भारत जैसा 137 करोड़ की आबादी वाला देश मात्र कुछ हजार टेस्ट ही कर रहा है, वहीं मात्र 5 करोड़ की आबादी वाला दक्षिण कोरिया 3 लाख से अधिक टेस्ट कर चुका है।
प्राइवेट लैब्स को टेस्टिंग के लिए इजाजत देने में क्यों देर हो रही है, क्या आप इसे समझ पा रहे हैं ? कोरोना टेस्टिंग की सच्चाई को समझने का प्रयास कीजिए।
लैब में COVID-19 की टेस्टिंग हेतु आवश्यक कैमिकल, जिसे चिकित्सीय भाषा में प्रोब्स कहा जाता है, के करीब 1 लाख प्रोब्स सैट ही देश के स्टॉक में उपलब्ध हैं।
हमारे अधिकांश चिकित्सीय उपकरण चीन से आते हैं, जो इस वक्त मंगाना संभव नहीं है। सभी संभावित देशों से नाउम्मीद होने के बाद जर्मनी से #प्रोब्स सैट मंगाने के ऑर्डर दिए जा चुके हैं।
साफ है कि जब कैमिकल आएगा तभी तो टेस्टिंग हो पाएगी। सोचिएगा तब तक हजारों हजार संभावित मरीज ऐसे ही बिना टैस्टिंग के अन्य लोगों को संक्रमित करते रहेंगे।
और अगर टैस्टिंग सुविधा होने पर संक्रमितों के उपचार की आवश्यकता पड़ी तो क्या आप जानते हैं, देश में अधिकतम 30 हजार वैंटिलेटर ही उपलब्ध हैं।
इसलिए जनता कर्फ्यू कहें या लाॅक डाउन हमें पूरी तरह सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाना ही होगा। और कोई दूसरा उपाय हमारे पास नहीं है।
सरकार इस मुश्किल वक्त में जो भी कुछ कर सकती है, वह कर रही है। डब्ल्यूएचओ भी सीमित संसाधनों वाले भारत की सरकार के प्रयासों की प्रशंसा कर रहा है।
कम खाईए, गम खाइए, पढिए, लिखिए, खूब योग कीजिए, टीवी देखिए, सोइए और सोशल मीडिया का भरपूर सदुपयोग कीजिए।
दूध, दही, सब्जी, ताजा फल और बिना अखबार के भी केवल आटा-दाल-चावल, अचार और पुरानी पुस्तकों पर एक दो सप्ताह तक जिया जा सकता है।
घर का दरवाजा मत स्वंय के बाहर जाने के लिए खोलिए और ना किसी आने वाले के लिए खोलिए।
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